चिंतन का अर्थ, परिभाषा, प्रकार, सोपान व विशेषताएँ

बाल मनोविज्ञान में चिंतन शब्द का ज़िक्र होता ही रहता है। चिंतन बाल विकास का एक प्रमुख टॉपिक है। इस आर्टिकल में चिंतन का अर्थ क्या है और चिंतन की परिभाषा, चिंतन के प्रकार कितने होते हैं? चिंतन के सोपान और चिंतन की विशेषताओं के बारे में विस्तार से जानेंगे।

चिंतन का अर्थ एवं परिभाषा और चिंतन के प्रकार ये तो आपको आना ही चाहिए। अगर आप BTC, बीएड, डीएलएड, या फिर UPTET , CTET की तैयारी कर रहे हैं, तो आपके लिए ये टॉपिक और भी महत्वपूर्ण बन जाता है।

इस टॉपिक में चिंतन का अर्थ, चिंतन की परिभाषा, चिंतन के प्रकार, चिंतन के सोपान और चिंतन की विशेषताएं ये प्रमुख रूप से सम्मिलित हैं।

चिंतन का अर्थ और परिभाषा, चिंतन के प्रकार, सोपान व विशेषताएँ

चिंतन का अर्थ

चिंतन का अर्थ क्या है? सबसे पहले इसको समझा जाये। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है आपको भी पता है और हमको भी। तो मनुष्य के जीवन मे कठिनाई और समस्याएं भी आती रहती हैं।

मनुष्य समस्याओं के समाधान हेतु भिन्न-भिन्न प्रकार के उपाय सोचता है। यही उपाय सोचना ही चिंतन कहलाता है। यह बड़ा गम्भीर होता है। इससे ही आगे समस्या का हल निकलना है या नही ये तय होता है।

चिंतन की परिभाषाएँ

विभिन्न मनोवैज्ञानिक के अनुसार चिंतन की परिभाषायें दी जा रही हैं। आप इसको पढ़िये और याद कर लीजिए।

रॉस के अनुसार चिंतन की परिभाषा

चिंतन मानसिक क्रिया का ज्ञानात्मक पहलू है। यह मन की बातों से सम्बंधित मानसिक क्रिया है।

रायबर्न के अनुसार चिंतन की परिभाषा

चिंतन इच्छा संबंधी क्रिया है।जो किसी असंतोष के कारण आरंभ होती है।और प्रयास के आधार पर चलती हुई स्थिति पर पहुंच जाती है जो इच्छा को सन्तुष्ट करती है।

वैलेंटाइन के अनुसार चिंतन की परिभाषा

चिंतन शब्द का प्रयोग उस क्रिया के लिए किया जाता है। जिसमें श्रृंखलाबद्ध विचार किसी लक्ष्य या उद्देश्य की ओर अविराम गति से प्रवाहित होते हैं।

गैरेट के अनुसार चिंतन की परिभाषा-

चिन्तन एक प्रकार का अव्यक्त एवं रहस्यपूर्ण व्यवहार होता है, जिसमें सामान्य रूप से प्रतीकों (बिम्बों, विचारों, प्रत्ययों) का प्रयोग होता है।

चिंतन के प्रकार (Kinds of Thinking)

चिंतन के मुख्य रूप से 4 प्रकार हैं-

  1. प्रत्यक्षात्मक चिंतन
  2. प्रत्ययात्मक चिंतन
  3. कल्पनात्मक चिंतन
  4. तार्किक चिंतन

चिंतन के 4 प्रकार विस्तार से

चिंतन के चारों प्रकार को थोड़ा विस्तार से जान लिया जाए।

1- प्रत्यक्षात्मक चिंतन

जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है कि इसमें उस ही चीज़ का चिंतन होगा जो प्रत्यक्ष होगी। अर्थात सामने होगी। इसमें बालक उन वस्तुओं के बारे के सोचता है जो उसके सामने भौतिक वातावरण में उपस्थित रहती हैं।

2- प्रत्ययात्मक चिंतन

यह थोड़ा उच्च प्रकार का चिंतन है। इसमें बालक में प्रत्यय का निर्माण बनना शुरू हो जाता है तब वह चिंतन करता है। बालक में जितना ज्यादा प्रत्यय बनेंगे। उतना ज्यादा प्रत्ययात्मक चिंतन उसमे होगा। प्रत्यय से आशय है किसी भी प्रकार की छवि बनने से है। बच्चा जानवर और वस्तुओं आदि को देखकर उनका चित्र दिमाग मे बनाना सीख जाता है। इसके आधार पर चिंतन शुरू करता है।

3- कल्पनात्मक चिंतन

इसमे वस्तुओं के सामने न होते हुए भी उसके बारे में सोचना और चिंतन करना ही कल्पनात्मक चिंतन कहलाता है। इसमे बालक कल्पना करना सीख जाता है। अब वह वस्तुओं आदि के सामने न होते हुए भी उसके बारे में सोच सकता है बस यही कल्पनात्मक चिंतन है।

4- तार्किक चिंतन

इसमे कई सिद्धान्तों तर्कों आदि के आधार पर चिंतन किया जाता है। यह चिंतन हर कोई नही कर पाता है। यह सर्वाधिक उच्च प्रकार का चिंतन है। बुद्धिजीवी अक्सर इसी प्रकार का चिंतन प्रयोग करते हैं।

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चिंतन की विशेषताएं

चिंतन की विशेषताएं 

चिंतन की कुछ विशेषतायें इस प्रकार हैं-

  1. चिंतन द्वारा समस्या का समाधान किया जा सकता है।
  2. चिंतन हर व्यक्ति द्वारा किया जाता है।
  3. सज्जन पुरुष सदैव चिंतन करते रहते हैं।
  4. चिंतन एक मानसिक प्रक्रिया है।
  5. चिंतन एक विशिष्ट गुण है।

चिंतन के सोपान

चिंतन के सोपान निम्न हैं-

  • समस्या का आकलन
  • सम्बन्धित तथ्यों का संकलन
  • निष्कर्ष पर पहुंचना
  • निष्कर्ष का परीक्षण

समस्या का आकलन-

यह चिंतन का सबसे पहला सोपान है। इसमे किसी भी समस्या का आकलन किया जाता है। कि आखिर ये समस्या है क्या? ये समस्या है किस प्रकार की। फिर बढ़ा जाता है अगले सोपान में।

सम्बन्धित तथ्यों का संकलन-

इसमे उस समस्या से सम्बंधित तथ्य संकलित किये जाते हैं। जो जो तथ्य उस समस्या से जुड़े हुए होते हैं उन सबको संकलित कर लिया जाता है।

निष्कर्ष पर पहुंचना

फिर सब तथ्यों को संकलित करने के बाद निष्कर्ष में पहुंचा जाता है। निष्कर्ष पर पहुँचने के पश्चात अगले सोपान की ओर बढ़ते हैं।

निष्कर्ष का परीक्षण

अब उस निष्कर्ष का परीक्षण किया जाता है कि ये निष्कर्ष सही है या गलत इसके परिणाम कैसे हैं आदि।

तो दोस्तों आज के इस आर्टिकल में हमने चिंतन का अर्थ एवं परिभाषा जाना, चिंतन के प्रकार जानें, चिंतन की विशेषताये जानी और साथ ही चिंतन के सोपान भी जानें। उम्मीद है आपको यह पढ़कर चिंतन नामक टॉपिक पूरी तरह से आ गया होगा।

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