वंशानुक्रम व वातावरण का महत्व

वंशानुक्रम और वातावरण के क्षेत्र में हुए विभिन्न प्रकार के अध्ययनों से आधुनिक शिक्षा की प्रणाली में शिक्षकों और बालकों को बहुत मदद मिली है।

वंशानुक्रम और वातावरण के सिद्धांतों का उपयोग करके हम बच्चों के समग्र विकास में नए आयामों को जगह मिली है।

वंशानुक्रम का महत्त्व :-

वंशानुक्रम का आज की शिक्षा प्रणाली और बच्चों के जीवन में पड़ने वाले असर और महत्व को हम निम्लिखित बिंदुओं की सहायता से समझ सकते हैं।

वंशानुक्रम के असर से सभी बच्चों की शारिरिक संरचना में विविधता होती है, जिसके माध्यम से एक शिक्षक बच्चों की शारिरिक संरचना के आधार पर उसके विकास में ध्यान दे सकता है।

बालकों और बालिकाओं में लिंगीय भेद का कारण भी वंशानुक्रम ही है, जिससे किसी खास विषय में बालक एवं बालिकाओं की रुचि और समझने की योग्यताओं में अंतर हो सकता है, जिसके ज्ञान के आधार पर शिक्षक उनकी और बेहतर ढंग से मदद कर सकता है।

वंशानुक्रम के कारण बच्चों की जन्मजात क्षमताओं में अन्तर पाया जाता है, जिसके आधार पर उनके समग्र विकास के लिए आवश्यक सहायता की जा सकती है।

वंशानुक्रम के फलस्वरूप बच्चों में अनेक प्रकार की विभिन्नताएँ पाई जाती हैं, शिक्षक बच्चों की इन विभिन्नताओं के आधार पर शिक्षा की आयोजना तैयार कर सकता है।

वंशानुक्रम के नियम से हम यह जानते हैं, कि यदि किसी बच्चे के माता-पिता कम बुद्धि के हों तो यह जरूरी नहीं कि उनके बच्चे भी मंदबुद्धि के ही होंगे।

और इसका उल्टा भी सही है कि योग्य माता-पिता की संतानें अयोग्य भी हो सकती हैं। इन चींजों की जानकारी होना शिक्षकों और समाज के लिए जरूरी है, जिससे वह सभी बच्चों के साथ उचित व्यवहार कर सकें।

बालकों को वंशानुक्रम से प्राप्त अच्छी और बुरी प्रवृत्तियों का अध्ययन करके उनकी बुरी प्रवित्तियों को खत्म करने के प्रयास किये जा सकते हैं।

वंशानुक्रम का महत्व पर वुडवर्थ का कथन

वुडवर्थ ने देहात और शहर के बच्चों के मानसिक स्तर मे भिन्नता का कारण वंशानुक्रम को माना है, वुडवर्थ ने वंशानुक्रम के महत्व को बताते हुए कहा है कि–

“देहाती बालकों की अपेक्षा शहरी बालकों के मानसिक स्तर की श्रेष्ठता, आंशिक रूप से वंशानुक्रम के कारण होती है। शिक्षक इस ज्ञान से अवगत होकर अपने शिक्षण को उनके मानसिक स्तरों के अनुसार बना सकता है ”


– वुडवर्थ

वातावरण का महत्त्व :-

◆ वातावरण हमारे जीवन में बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। वातावरण से ही एक बालक के विकास की दिशा तय होती है। वातावरण का बच्चों की भावनाओं पर व्यापक प्रभाव पड़ता है। अनुकूल वातावरण में ही जीवन का विकास होता है, और व्यक्ति आगे बढ़ता है।

◆ वातावरण का व्यक्ति के बर्ताव, चरित्र, देशप्रेमी आदि पर गहरा असर पड़ता है। व्यक्ति के व्यक्तित्व और उसके जीवन में वातावरण के महत्व को बताने के लिए विभिन्न विद्वानों ने अपने मत दिए हैं, जिनमें से कुछ हम आपको यहाँ बात रहें हैं।

सोरेन्सन का वातावरण के महत्व के बारे में मत

“शिक्षा का ज्ञान उत्तम वातावरण बालकों की बुद्धि और ज्ञान की वृद्धि में प्रशंसनीय योगदान देता है। इस बात की जानकारी रखने वाला शिक्षक अपने छात्रों के लिए उत्तम से उत्तम शैक्षिक वातावरण प्रदान करने की चेष्ठा कर सकता है ”


– सोरेन्सन

रूथ बैंडिक्ट का वातावरण के महत्व के बारे में मत

रूथ बैंडिक्ट ने वातावरण का जीवन में पड़ने वाले महत्व के बारे में कहना है कि –

“ व्यक्ति जन्म से ही एक निश्चित सांस्कृतिक वातावरण में रहता है और उसके आदर्शों के अनुरूप ही आचरण करता है। इस तथ्य को जानने वाला शिक्षक, बालक को अपना सांस्कृतिक विकास करने में योगदान दे सकता है ”


– रूथ बैंडिक्ट

शिक्षकों के लिए वातावरण का महत्व

◆ वातावरण के महत्त्व को समझने वाला शिक्षक, विद्यालय में बच्चों के लिए ऐसा वातावरण बना सकता है, जिससे बच्चों में विचारों अभिव्यक्ति, शिष्ट सामाजिक व्यवहार, कर्तव्यों और अधिकारों का ज्ञान इत्यादि गुणों का विकास हो सके।

◆ प्रत्येक समाज का अपना एक विशिष्ट वातावरण होता है। इसको समझने वाला शिक्षक विद्यालय में लघु समाज का वातावरण बनाकर विद्यार्थियों को अपने विस्तृत समाज के वातावरण से अनुकूलन करने की शिक्षा दे सकता है।

ऊपर दिए गए सन्दर्भों से यह पता चलता है कि वंशानुक्रम और वातावरण हमारे जीवन में कितना महत्व रखते हैं। शिक्षक को वंशानुक्रम और वातावरण दोनों के महत्व का ज्ञान होने से शिक्षक अपने छात्रों का वांछित और सन्तुलित विकास कर सकता है। सारेन्सन इसके सन्दर्भ में अपने विचारों को रखते हुए कहा है कि–

शिक्षक के लिए मानव-विकास पर वंशानुक्रम और वातावरण के सापेक्षिक प्रभाव और पारस्परिक सम्बन्ध का ज्ञान विशेष महत्त्व रखता है।


– सारेन्सन

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