वंशानुक्रम एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके अंतर्गत हमें अपने माता-पिता और उनके पूर्वजों के गुण प्राप्त होते हैं। इस पोस्ट पर आपको दुनियाभर के विभिन्न मनोवैज्ञानिकों द्वारा वंशानुक्रम के विषय में अध्ययन से प्राप्त वंशानुक्रम के सिद्धांत के बारे में विस्तार से बताया गया है।
वंशानुक्रम के सिद्धांत को पढ़ने से पहले यदि आपको वंशानुक्रम का अर्थ और परिभाषा नही पता है तो आप इस पोस्ट से वंशानुक्रम की परिभाषा, अर्थ और नियम के बारे में पढ़ सकते हैं।
वंशानुक्रम के सिद्धान्त और वंशानुक्रम के नियम :-
वंशानुक्रम हमेशा से ही मनोवैज्ञानिकों के लिए बहुत महत्वपूर्ण, रोचक और रहस्यमयी विषयों में से एक रहा है। विभिन्न वैज्ञानिकों ने वंशानुक्रम कई नियम या सिद्धांत दिए हैं।
यहाँ पर वंशानुक्रम के सर्वाधिक प्रचलित नियमों या वंशानुक्रम के सिद्धांत को दिया गया है जो कि निम्नलिखित हैं :-
- वंशानुक्रम का बीजकोष की निरन्तरता का नियम
- वंशानुक्रम का समानता का नियम
- वंशानुक्रम का विभिन्नता का नियम
- वंशानुक्रम का प्रत्यागमन का नियम
- वंशानुक्रम का अर्जित गुणों के संक्रमण का नियम
- वंशानुक्रम का मैण्डल का नियम
वंशानुक्रम का बीजकोष की निरन्तरता का नियम :-
वंशानुक्रम के बीजकोष की निरन्तरता के नियम के अनुसार बच्चे को जन्म देने वाला बीजकोष कभी नष्ट नहीं होता। मतलब माता-पिता से प्राप्त बीजकोष कभी भी नष्ट नहीं होता और बच्चे द्वारा अगली पीढ़ी तक पहुंचा दिया जाता है।
वंशानुक्रम के बीजकोष की निरन्तरता के नियम के बारे में वीजमैन का कथन :-
मनोवैज्ञानिक वीजमैन ने वंशानुक्रम के बीजकोष की निरंतरता के सम्बंध में अपना मत दिया है, जिसे वीजमैन के बीजकोष की निरन्तरता के नियम के रूप में जाना जाता है।
वीजमैन के बीजकोष की निरन्तरता के नियम में विभिन्न वैज्ञानिकों में मतभेद हैं और वीजमैन के बीजकोष की निरन्तरता के नियम को स्वीकार नहीं किया जाता है। इसकी आलोचना करते हुए बी. एन. झा. ने लिखा है कि :-
वंशानुक्रम का समानता का नियम :-
वंशानुक्रम के समानता के नियम के अनुसार, जैसे माता-पिता होते हैं, वैसी ही उनकी सन्तान होती है। वंशानुक्रम के समानता के नियम के बारे में मनोवैज्ञानिक सोरेनसन ने अपना मत दिया है। सोरेनसन वंशानुक्रम के समानता का नियम का अर्थ और स्पष्टीकरण करते हुए कहा है कि :-
वंशानुक्रम का समानता का नियम भी पूरी तरह से सही नहीं प्रतीत होता है क्योंकि, समाज में ऐसे बहुत से उदाहरण देखने को मिलते हैं, जिसमें काले माता-पिता की सन्तान गोरी होती है, और ऐसे भी उदाहरण हैं, जिसमें मन्द बुद्धि माता-पिता की सन्तान बुद्धिमान होती है।
इससे सिद्ध होता है कि वंशानुक्रम का समानता का नियम पूरी तरह से सही नहीं है, मतलब संतान और उसके माता-पिता में समानता तो होती है, लेकिन इसके बहुत से अपवाद भी हैं।
वंशानुक्रम का विभिन्नता का नियम :-
वंशानुक्रम का विभिन्नता का नियम के अनुसार, बच्चे अपने माता-पिता के बिल्कुल समान न होकर उनसे कुछ भिन्न होते हैं। इसी प्रकार, एक ही माता-पिता के दो बच्चे भी एक दूसरे से भिन्न हो सकते हैं।
वंशानुक्रम का विभिन्नता का नियम के अनुसार, हो सकता है, कि एक ही माता-पिता की संताने रंग में समान हों लेकिन बुद्धि, और स्वभाव में एक-दूसरे से अलग-अलग होते हों। या फिर हो सकता है उनका रंग अलग-अलग हो और उनकी बुद्धि में समानता हो।
वंशानुक्रम के विभिन्नता के नियम के बारे में सोरेन्सन का मत :-
वंशानुक्रम का विभिन्नता का नियम के विषय में सोरेन्सन ने बताया है कि –
वंशानुक्रम के विभिन्नता के नियम के संबंध में डार्विन और लेमार्क का मत :-
डार्विन और लेमार्क ने अनेक प्रयोगों के आधार पर वंशानुक्रम का विभिन्नता का नियम का प्रतिपादन किया है, डार्विन और लेमार्क ने वंशानुक्रम के विभिन्नता के नियम के संबंध में निम्नलिखित विचार प्रस्तुत किये हैं –
वंशानुक्रम का प्रत्यागमन का नियम :-
वंशानुक्रम का प्रत्यागमन का नियम के अनुसार, बच्चों में अपने माता-पिता के विपरीत गुण पाये जाते हैं। वंशानुक्रम के प्रत्यागमन का नियम के बारे में सोरेन्सन ने अपना मत देते हुए कहा है कि–
वंशानुक्रम का प्रत्यागमन का नियम, प्रकृति द्वारा विशिष्ट गुणों की जगह सामान्य गुणों का ज्यादा वितरण करके एक जाति के जीवों को एक ही स्तर पर रखने का प्रयास करती है।
प्रत्यागमन नियम के अनुसार, बच्चे अपने माता-पिता के विशिष्ट गुणों को ना अपनाकर सामान्य गुणों को ज्यादा ग्रहण करते हैं। वंशानुक्रम के प्रत्यागमन नियम के कारण ही महान व्यक्तियों की सन्तानें ज्यादातर उनके बराबर महान नहीं होते हैं। उदाहरण के लिए – बाबर की संतान अकबर में, बाबर की तुलना में बहुत कम प्रभावशाली गुण थे।
प्रत्यागमन के कारण :-
प्रत्यागमन के निम्नलिखित दो प्रमुख कारण–
● माता-पिता के पित्रैकों में से एक कम और एक अधिक शक्तिशाली होता है।
● माता-पिता में उनके पूर्वजों में से किसी का पित्रैक अधिक शक्तिशाली होता है।
वंशानुक्रम का अर्जित गुणों के संक्रमण का नियम :-
वंशानुक्रम का अर्जित गुणों के संक्रमण का नियम के अनुसार, माता-पिता द्वारा अपने जीवनकाल में अर्जित किये जाने वाले गुण उनकी सन्तान को प्राप्त नहीं होते हैं। लेकिन लेमार्क का मत इससे अलग है, लेमार्क ने वंशानुक्रम का अर्जित गुणों के संक्रमण का नियम के बारे में कहा कि–
लेमार्क ने वंशानुक्रम का अर्जित गुणों के संक्रमण का नियम के लिए अपने मत को साबित करने के लिए उदाहरण के तौर पर कहतें हैं कि–
लेमार्क के उपरोक्त कथन की पुष्टि मैक्डूगल और पवलव ने चूहों पर एवं हैरीसन ने पतंगों पर परीक्षण करके की है।
आज के समय में विकासवाद या अर्जित गुणों के संक्रमण का सिद्धान्त स्वीकार नहीं किया जाता है। इसके बारे में वुडवर्थ ने अपना मत रखा है जो कि निम्नलिखित है–
वंशानुक्रम का मैण्डल का नियम :-
वंशानुक्रम का मैण्डल का नियम के अनुसार, वर्णसंकर प्राणी या वस्तुएँ अपने मौलिक या सामान्य रूप की ओर अग्रसर होती है। इस नियम को जेकोस्लोवेकिया के मैण्डल नामक पादरी ने प्रतिपादित किया था।
मैण्डल नेे बड़ी और छोटी मटरें बराबर संख्या में मिलाकर बोयीं। उगने वाली मटरों में सब वर्णसंकर जाति की थीं। मैण्डल ने इस वर्णसंकर मटरों को फिर बोया और इस क्रिया को कई बार दोहराया और अंत में मैण्डल को वर्णसंकर के बजाय शुद्ध मटर प्राप्त हुईं।
ग्रेगर जॉन मैण्डल ने जो प्रयोग किये, उनसे प्राप्त निष्कर्षों से वंशानुक्रम तथा वातावरण के प्रभावों के अध्ययन में अत्यधिक उपयोगी साबित हुए।