इस पोस्ट पर वह हम आपको स्वर ध्वनियों का वर्गीकरण विस्तार से बताएंगे अगर आप स्वर वर्ण क्या होते हैं? नहीं जानते हैं तो इस लिंक पर जाकर आप स्वर वर्ण के बारे में पढ़ सकते हैं। स्वर ध्वनियों का वर्गीकरण हिंदी में कई चीजों के आधार पर किया गया है, जो कि निम्नलिखित हैं :-
- मात्राकाल के आधार पर स्वर का वर्गीकरण
- उच्चारण के आधार पर स्वर का वर्गीकरण
- जिह्वा के उत्थापित भाग के आधार पर स्वर का वर्गीकरण
- ओष्ठों की गोलाई के आधार पर स्वर का वर्गीकरण
- मुखाकृति के आधार पर स्वर का वर्गीकरण
मात्राकाल के आधार पर स्वर का वर्गीकरण :-
किसी भी स्वर के उच्चारण में लगने वाले समय को मात्राकाल कहते हैं इस आधार पर स्वर के प्रकार के होते हैं :- (1) ह्रस्व स्वर (2) दीर्घ स्वर (3) प्लुत स्वर
ह्रस्व स्वर :-
ह्रस्व स्वर एक मात्रिक या मूल स्वर भी कहते हैं। हिंदी वर्णमाला में निम्न चार ह्रस्व स्वर हैं– अ, इ, उ, ऋ
दीर्घ स्वर :-
◆ द्विमात्रिक या संयुक्त स्वर हिंदी व्याकरण में निम्नलिखित सात स्वर धीर्घ स्वर हैं– आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ
दीर्घ स्वरों की रचना दो स्वरों को जोड़कर होती है, इसीलिए दीर्घ स्वर को संयुक्त स्वर भी कहते हैं।
● आ = अ + अ => राम + अनुज = रामानुज
● ई = इ + इ => रवि + इन्द्र = रवीन्द्र
● ऊ = उ + उ => भानु + उदय = भानूदय
● ए = अ + इ => नर + इश = नरेश
● ओ = अ + उ => नव + उदय = नवोदय
● औ = अ + ओ => जल + ओघ = जलौघ
प्लुत स्वर :-
◆ मूलतः कोई भी स्वर प्लुत स्वर नहीं होता लेकिन जब किसी स्वर के उच्चारण में ह्रस्व स्वरों में लगने वाले समय का तीन गुना समय लगता है तो वह स्वर लुप्त स्वर कहलाता है। स्वर के प्लुत रूप को व्यक्त करने के लिए उसके साथ ‘३’ चिह्न का प्रयोग करते हैं, जैसे :- ओ३म
◆ मात्राकाल के आधार पर स्वर वर्णों का विभाजन सर्वप्रथम संस्कृत आचार्य पाणिनि द्वारा रचित अष्टाध्याई नामक ग्रंथ में प्रस्तुत किया गया था।
◆ मुर्गे की प्रातः कालीन ध्वनि ‘कुकूकू‘ के आधार पर सर्वप्रथम ‘ऊ’ स्वर का विभाजन किया गया था, फिर उसी आधार पर अन्य स्वरों का विभाजन किया गया।
एकमात्रो भवेद् ह्रस्वो, द्विमात्रो दीर्घ उच्यते।
त्रिमात्रस्तु प्लुतो ज्ञेयो, व्यंञ्जनं चार्धमात्रकम्॥
◆ अर्थात एकमात्रिक स्वर ह्रस्व स्वर होता है। द्विमात्रिक स्वर दीर्घ स्वर होता है। तीन मात्राओं वाला स्वर प्लुत स्वर कहलाता है, और व्यंजन वर्ण की मात्रा आधी मानी जाती है। यहाँ चार्धमात्रकम् का मतलब आधी मात्रा है।
उच्चारण के आधार पर स्वरों का वर्गीकरण :-
उच्चारण के आधार पर स्वरों का निम्नलिखित रूप में वर्गीकृत किया गया है –
(1) अनुनासिक स्वर
(2) अननुनासिक या निरनुनासिक स्वर
अनुनासिक स्वर :-
“मुखनासिका वचनोऽनुनासिकः”
अर्थात जब किसी स्वर का उच्चारण करने पर श्वास वायु मुँह और नाक दोनों से बाहर निकलती है तो वह स्वर अनुनासिक स्वर कहलाता है। स्वर के अनुनासिक रूप को दर्शाने के लिए स्वर के साथ चंद्र बिंदु का प्रयोग किया जाता है।अनुनासिक स्वर के उदाहरण :- अँ, आँ, इँ, ईंं, उँ, ऊँ, एँँ, ऐंं, ओं, औं
अननुनासिक या निरनुनासिक स्वर :-
अन् + अनुनासिक = अननुनासिक अर्थात जब किसी स्वर का उच्चारण करने पर श्वास केवल मुंह से ही बाहर निकलती है तो वह स्वर अननुनासिक या निरनुनासिक स्वर कहलाता है। अपने मूल रूप में लिखे हुए सभी स्वर अननुनासिक या निरनुनासिक स्वर होते हैं।
जिह्वा के उत्थापित भाग के आधार पर स्वर का वर्गीकरण :-
जिह्वा के उत्थापित भाग के आधार पर वर्गीकरण करने पर स्वर तीन प्रकार के माने गयें हैं–
1. अग्र स्वर
2. मध्य स्वर
3. पश्च स्वर
अग्र स्वर :-
अग्र स्वर के उच्चारण के समय जीभ का आगे वाला भाग ऊपर उठता है- ई, ई, ए, ऐ
मध्य स्वर :-
मध्य स्वर के उच्चारण के समय जीभ का बीच वाला भाग ऊपर उठता है, इसलिए इसे केंद्रीय स्वर भी कहते हैं- अ
पश्च स्वर :-
पश्च स्वर का उच्चारण करते समय जीभ का पीछे का हिस्सा ऊपर होता है– आ, उ, ऊ, ओ, औ
ओष्ठों की गोलाई के आधार पर स्वर का वर्गीकरण :-
ओष्ठों की गोलाई के आधार पर वर्गीकरण करने पर स्वर दो प्रकार के माने गयें हैं–
1. वृताकार या वृत्तमुखी स्वर
2. अवृताकार या अवृत्तमुखी स्वर
वृताकार या वृत्तमुखी स्वर :-
वृताकार या वृत्तमुखी स्वर ऐसे स्वर हैं, जिनका उच्चारण करने पर ओष्ठों का आकार गोल हो जाता है, यही कारण है कि इन स्वरों को वृत्तमुखी स्वर या वृताकार स्वर कहते हैं– जैसे :- उ, ऊ, ओ, औ
अवृताकार या अवृत्तमुखी स्वर :-
अवृताकार या अवृत्तमुखी स्वर ऐसे स्वर हैं, जिनका उच्चारण करने पर ओष्ठों का आकार गोल न होकर ऊपर-नीचे फैल जाता है, यही कारण है कि इन स्वरों को अवृत्तमुखी स्वर या अवृताकार स्वर कहते हैं– जैसे :- अ, आ, इ, ई, ए, ऐ
मुखाकृति के आधार पर स्वर का वर्गीकरण :-
मुखाकृति के आधार पर स्वर का वर्गीकरण करने पर स्वर चार प्रकार के माने गयें हैं–
1. संवृत्त स्वर
2. विवृत्त स्वर
3. अर्ध संवृत्त स्वर
4. अर्ध विवृत्त स्वर
संवृत्त स्वर :-
संवृत्त स्वर को बोलने पर मुँह सबसे कम खुलता है– जैसे :- इ, ई, उ, ऊ
विवृत्त स्वर :-
विवृत्त स्वर को बोलने पर मुँह सर्वाधिक खुलता है– जैसे :- आ
अर्ध संवृत्त स्वर :-
अर्ध संवृत्त स्वर को बोलने पर मुख संवृत्त स्वर को बोलने से खुलने वाले मुख से थोड़ा ज्यादा खुलता है– ए, ओ
अर्ध विवृत्त स्वर :-
अर्ध विवृत्त स्वर को बोलने पर मुख विवृत्त स्वर से थोड़ा कम खुलता है– जैसे :- अ, ऐ, औ
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