नि:शुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा अधिकार अधिनियम-2009 के अन्तर्गत मूल्यांकन को भी सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन के रूप में देखा गया। क्योंकि सीखना एक सतत् प्रक्रिया है, अतः मूल्यांकन भी सतत् होना चाहिए।
मूल्यांकन शिक्षण अधिगम प्रक्रिया व उसमें सुधार का एक अभिन्न अंग है। यह एक प्रक्रिया है, लक्ष्य नहीं, जो बालक के विकास एवं उपलब्धियों को दर्शाती है। साथ ही विद्यार्थी तथा शिक्षातन्त्र दोनों को ही विवेचनात्मक और आलोचनात्मक प्रतिपुष्टि से फायदा पहुँचाती है।
प्रारम्भिक शिक्षा की आठ वर्षों की अवधि वह समय होता है, जब बालक का महत्त्वपूर्ण संज्ञानात्मक विकास होता है और उनके विवेक को आधार व आकार मिलता है। सामाजिक कौशलों, बुद्धि एवं अभिवृत्तियों का भी विकास होता है। इसीलिए आवश्यक है कि कक्षा 1 से 8 की 8 वर्षों की विद्यालयी शिक्षा को एक सम्पूर्ण इकाई के रूप में देखा जाए। अतः बालकों के सीखने एवं मूल्यांकन को भी कक्षावार देखने के स्थान पर सततता के साथ देखा जाए।
सतत् मूल्यांकन का अभिप्राय कक्षा शिक्षण एवं मूल्यांकन दोनों से है, जो साथ-साथ चलने वाली प्रक्रिया है। सततता अन्तर्गत सीखने के दौरान बालकों के अधिगम का अवलोकन, अवलोकन के दौरान बालक की कठिनाइयों को पहचानना एवं उसे इस प्रकार से दूर करना कि बालक की लगातार प्रगति को देखा जा सके, सम्मिलित है।
सीखने के दौरान बच्चे के कार्यों पर लगातार नजर रखना, उसकी सक्रियता, सहभागिता कठिनाइयों को दर्ज करना तदनुसार शिक्षण योजना बनाना ही मूल्यांकन की सततता है। बालकों के सीखने एवं आकलन में विविधता एवं व्यापकता भी होनी चाहिए।
आर. टी. ई.2009 की विभिन्न धाराओं के मद्देनजर प्रत्येक बालक के पढ़ने की गति और स्तर के आधार पर योजना बनाई जाए, किसी भी बालक को फेल न किया जाए तथा बहुस्तरीय एवं बहुकक्षीय शिक्षण करवाया जाए।
शिक्षकों के लिए सतत् मूल्यांकन
प्रत्येक बालक अपने ज्ञान का निर्माण स्वयं करता है। अध्यापक की भूमिका मात्र एक सहयोगकर्ता की है। बिना भेदभाव के सभी बालकों को शिक्षा देना महत्त्वपूर्ण है। आकलन या मूल्यांकन का स्वरूप भी ऐसा हो, जिससे प्रत्येक बालक को सहज व समान विकास के अवसर मिले, बालक को किसी प्रकार ठेस न पहुँचे आदि। सभी तथ्यों के मद्देनजर हमें आकलन या मूल्यांकन का क्षेत्र व प्रकार सुनिश्चित करना होगा, क्योंकि बालक सर्वांगीण विकास महत्त्वपूर्ण है। सतत् और व्यापक मूल्यांकन में शिक्षकों के लिए कुछ महत्वपूर्ण बिंदु –
1. सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन में शिक्षक द्वारा तीन महत्त्वपूर्ण कार्य किए जाने हैं-पहला यह देखना कि बच्चों ने क्या वो सीखा है, जो कि उन्हें सीखना चाहिए ? दुसरा उनके सीखने की प्रगति क्या है ? और तीसरा उसकी सतत् उपलब्धि क्या है ?
2. शिक्षक द्वारा बच्चों का मूल्यांकन दो स्थितियों में किया जाना है-पहला बच्चे के व्यक्तिगत कार्यक्षेत्र में और दसरा सामूहिक कार्यक्षेत्र में।
3. शिक्षक देखे कि बच्चे किस तरह से सीख रहे हैं। यानी बच्चे के सीखने के तरीके क्या हैं ? उनमें क्या किसी बदलाव की आवश्यकता है ? शिक्षक इन बातों को अपनी डायरी में अपने अनुसार लिख ले, ताकि बाद में उस बच्चे के बारे में लिखते समय यह टिप्पणी काम आ सके।
4. शिक्षक यह देखे कि जो विषयवस्तु बच्चे को सीखनी थी, वो सीखी या नहीं। इसे दर्ज करते रहे, ताकि कुछ समय बाद पाठ्यक्रम के आधार पर बच्चे की प्रगति का मूल्यांकन किया जा सके।
5. बच्चों को सीखने-सिखाने की गतिविधि में पर्याप्त अभ्यास की आवश्यकता होती है। एक शिक्षक के लिए आवश्यक है कि वो समय-समय पर बच्चों को सिखाई गई अवधारणा पर अभ्यास कार्य देते रहें।
6. बच्चों को अभिव्यक्ति के पर्याप्त अवसर दिए जाएँ। इस कार्य के लिए बच्चों को कलर, पेन्सिल, शॉर्पनर तथा स्केच पेन के साथ ड्रॉइंग शीट आदि दी जानी है।
7. बच्चों का मूल्यांकन करने के लिए शिक्षक के पास पर्याप्त साक्ष्य होना चाहिए। इसके लिए बच्चों के द्वारा किए गये कार्यों को पोर्टफोलियो फाईल में संकलित किया जाना है।
8. सतत् और व्यापक शिक्षण अधिगम प्रक्रिया के दौरान बालक का मूल्यांकन नियमित रूप से किया जाना है।
9. बच्चों के बारे में जानने के लिए जो भी सम्भव तार्किक एवं रचनात्मक तरीके हैं, यह तरीके कक्षा में सीखने-सिखाने की प्रक्रिया के दौरान होंगे।
10. विषयाधारित अवधारणाओं के साथ तार्किक सोच, समूह में व्यवहार, वैज्ञानिक दृष्टिकोण, सौन्दर्यबोध, न्याय व समता के प्रति दृष्टिकोण आदि का भी मूल्यांकन किया जाना है।
11. बच्चे के सीखने की प्रक्रिया के दौरान निरन्तर प्राप्त हो रही सूचनाओं के आधार पर बच्चों के समूह में शिक्षण हेतु पाक्षिक योजना बनाते हुए कार्य करना आवश्यक है।
12. मूल्यांकन के लिए विभिन्न तकनीक जैसे -मौखिक, प्रोजेक्ट, प्रस्तुति और विभिन्न उपकरण जैसे-चेकलिस्ट, अवलोकन, रेटिंग स्केल, पोर्टफोलियो आदि का उपयोग शिक्षण योजना अनुसार किया जाना है।
13. समय-समय पर अभिभावकों को बालक की प्रगति से अवगत कराते रहना है।
14. स्वमूल्यांकन व समूह कार्य के लिए बालकों को सही समझ बनाते हुए प्रेरित करना है।