अधिनियम में शिक्षकों की भूमिका एवं दायित्व निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा अधिकार अधिनियम , 2009 के अन्तर्गत धारा 23 से लेकर धारा 28 में शिक्षकों के दायित्व और विद्यालयों में छात्रों और शिक्षकों के बीच अनुपात आदि के बारे में विस्तृत रूप से बताया गया है जो की निम्नलिखित हैं –
1. धारा 23
इस धारा में शिक्षकों की नियुक्ति के सम्बन्ध में है जिनको निम्न बिन्दुओ में समझा जा सकता है –
- कोई व्यक्ति, जिसके पास केन्द्रीय सरकार द्वारा मान्यता अधिसूचना द्वारा प्राधिकृत किसी शिक्षा प्राधिकारी द्वारा यथा अधिकथित ऐसी न्यूनतम योग्यताए हैं , शिक्षक के रूप में नियुक्ति के लिए पात्र होगा ।
- जहाँ किसी राज्य में अध्यापक शिक्षा के पाठ्यक्रम या उसमें प्रशिक्षण प्रदान करने वाली पर्याप्त संस्थाएँ नहीं हैं या उपधारा – 1 के अधीन यथा अधिकथित न्यूनतम योग्यताएँ रखने वाले शिक्षक पर्याप्त संख्या में नहीं हैं , वहाँ केन्द्र सरकार यदि वह आवश्यक समझे , अधिसूचना द्वारा शिक्षक के रूप में नियुक्ति के लिए अपेक्षित न्यूनतम योग्यताओं को 5 वर्ष से अधिक की ऐसी अवधि के लिए शिथिल कर सकेगी , जो उस अधिसूचना में विनिर्दिष्ट की जाए । परन्तु ऐसा कोई शिक्षक , जिसके पास इस अधिनियम के प्रारम्भ में उप उपधारा – 1 के अधीन यथा अधिकथित न्यूनतम योग्यताएँ नहीं है , 5 वर्ष की अवधि के भीतर ऐसी न्यूनतम योग्यताएँ अर्जित करेगा।
- शिक्षक को संदेय वेतन और भत्ते तथा उसके सेवा के नियम व शर्ते वह होंगी , जो विहित की जाएँ।
- कोई भी व्यक्ति जिसके पास केन्द्र सरकार द्वारा घोषित शिक्षा अधिकारी द्वारा तय की गई न्यूनतम योग्यताएँ हैं , शिक्षक के रूप में नियुक्ति के लिए पात्र होगा।
- यदि किसी राज्य में अध्यापक शिक्षा के लिए पाठ्यक्रम या प्रशिक्षण देने वाली पर्याप्त संस्था या उपधारा – 1 के तहत चाहे गए उपयुक्त शिक्षक पर्याप्त संख्या में नहीं है , तो केन्द्र सरकार एक लिखित सूचना जारी करके शिक्षक भर्ती के लिए न्यूनतम योग्यताओं में अधिकतम 5 वर्ष के लिए शिथिलता दे सकती है।
- यदि वर्तमान में ऐसे शिक्षक / शिक्षिकाएँ हैं , जो कि तय मापदण्ड के अनुरूप योग्यता पूरी नहीं करते हैं , तो उन्हें यह कानून लागू होने के 5 वर्ष के भीतर निर्धारित योग्यता हासिल करनी होगी।
- शिक्षक को दिया जाने वाला वेतन और भत्ते तथा सेवा नियम और शतें सरकार द्वारा तय की जाएंगी ।
2. धारा 24
के अधीन नियुक्त शिक्षक निम्नलिखित कर्त्तव्यों का पालन करेगा –
- विद्यालय में उपस्थित होने में नियमितता और समय पालन ।
- धारा 29 की उपधारा ( 2 ) के उपबन्धों के अनुसार पाठ्यक्रम संचालित करना और उसे पूरा करना ।
- विनिर्दिष्ट समय के भीतर सम्पूर्ण पाठ्यक्रम पूरा करना ।
- प्रत्येक बालक के शिक्षा ग्रहण करने के सामर्थ्य का निर्धारण करना और तदनुसार तथा अपेक्षित अतिरिक्त शिक्षण ( यदि कोई हो ) जोड़ना ।
- माता – पिता और सरंक्षकों के साथ नियमित बैठकें करना और बालक के बारे में उपस्थिति में नियमितता , शिक्षा ग्रहण करने के सामर्थ्य , शिक्षण में की गई प्रगति और किसी अन्य ससंगत जानकारी के बारे में उन्हें अवगत कराना ।
- ऐसे अन्य कर्तव्यों का पालन करना , जो विहित किए जाए ।
- उपधारा 1 में विनिर्दिष्ट कर्तव्यों के पालन में व्यतिक्रम करने वाला / वाली कोई शिक्षक / शिक्षिका , उस पर लागू सेवा नियमों के अधीन अनुशासनिक कार्यवाही के लिए दायी होगा / होगी , परन्तु ऐसी अनुशासनिक कार्यवाही करने से पूर्व ऐसे शिक्षक को सुनवाई का युक्तियुक्त अवसर दिया जाएगा ।
- शिक्षक की शिकायतों ( यदि कोई हो ) को ऐसी रीति से दूर किया जाएगा , जो विहित की जाएँ ।
- शिक्षक स्कूल में नियमित आएँगे और समय का पालन करेंगे ।
- प्रत्येक बच्चे के पढ़ने के स्तर और गति को जाँचना , दर्ज करना और उसके आधार पर शिक्षण योजना तैयार करके पढ़ाना । यदि आवश्यकता हो , तो अतिरिक्त कक्षाएँ लेना ।
- सरकार द्वारा तय अन्य शैक्षिक कार्य ।
3. धारा 25
यह धारा छात्र शिक्षक अनुपात पर प्रकाश डालती है –
- इस अधिनियम के प्रारम्भ की तारीख से 6 माह के भीतर समुचित सरकार और स्थानीय प्राधिकारी यह सुनिश्चित करेंगे कि प्रत्येक विद्यालय में छात्र शिक्षक अनुपात अनुसूची में विनिर्दिष्ट किए गए अनुसार बनाए रखा जाए ।
- उपधारा ( 1 ) के अधीन छात्र – शिक्षक अनुपात बनाए रखने के प्रयोजन के लिए किसी विद्यालय में पदस्थापित किए गए किसी शिक्षक को किसी अन्य विद्यालय में सेवा नहीं करने दी जाएगी या धारा 27 में विनिर्दिष्ट प्रयोजनों से भिन्न किसी गैर – शिक्षण प्रयोजन के लिए तैयार नहीं किया जाएगा ।
- इस अधिनियम के पारित होने के 6 माह के भीतर अनुसूची में तय किया गया छात्र शिक्षक अनुपात बनाया जाएगा ।
- उपरोक्त उपधारा ( 1 ) की पालना करने हेतु शिक्षक को किसी ऐसे स्कूल में लगाया जा सकता है , जहाँ छात्र शिक्षक अनुपात ठीक नहीं है । उन शिक्षकों को धारा 27 के अन्तर्गत तय किए गए कार्यों केअतिरिक्त गैर शैक्षणिक कार्यों में नहीं लगाया जाएगा ।
4. धारा 26
नियुक्ति प्राधिकारी, समुचित सरकार या किसी स्थानीय प्राधिकारी द्वारा स्थापित उसके स्वामित्वाधीन, नियन्त्रणाधीन या उसके द्वारा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष उपलब्ध करवाई गई निधियों द्वारा भागत वित्तपोषित किसी विद्यालय के सम्बन्ध में यह सुनिश्चित करेगा कि उसके नियन्त्रणाधीन किसी विद्यालय में शिक्षक के रिक्त पद कुल स्वीकृत पद संख्या के 10 प्रतिशत से अधिक नहीं हो ।
5. धारा 27
किसी शिक्षक को दस वर्षीय जनसंख्या जनगणना, विभीषिका राहत कर्त्तव्यों या यथास्थिति, स्थानीय प्राधिकारी या राज्य विधानमण्डलों या संसद के निर्वाचनों से सम्बन्धित कार्यों के आलावा किसी अन्य गैर-शैक्षिक कार्यों को करने के लिए नहीं कहा जा सकता है।
6. धारा 28
इस धारा के नियम के अनुसार कोई भी सरकारी अध्यापक किसी भी निजी शिक्षण कार्यों में कार्य नहीं है।