प्रस्तावना
संविधान विकास के समान अवसर की गारण्टी देता है । अतः यह सरकार का उत्तरदायित्व है कि आजीविका की दौड़ में राष्ट्र के सभी बच्चों को , चाहे वे धनी परिवार के हो या निर्धन परिवार के , समान अवसर दिये जाएँ । देश के बच्चों को मजबूत , साक्षर और अधिकार सम्पन्न बनाने का मार्ग प्रशस्त करना सरकार का प्रमुख उत्तरदायित्व है । देश के सभी बच्चों को गुणवत्तापूर्ण और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करना तथा ज्ञान , कौशल और मूल्य से लैस कर उन्हें भारत का प्रबुद्ध नागरिक बनाना ही सरकार का प्रमुख उद्देश्य है । स्वतन्त्रता के बाद प्राथमिक शिक्षा के विस्तार के लिए सरकार द्वारा किए गये प्रयास प्रशंसनीय है । इसी क्रम में निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा अधिकार अधिनियम , 2009 भी सरकार द्वारा किए गये प्रयासों में से एक प्रशंसनीय प्रयास है ।
अधिनियम का निर्माण
1 अप्रैल , 2010 को , निःशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम , 2009 जम्मू एवं कश्मीर को छोड़कर सारे देश में लागू कर दिया गया । यह अधिनिमय 6 से 14 वर्ष के आयु वर्ग के सभी बच्चों को निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करने हेतु विभिन्न प्रावधानों एवं उन प्रावधानों को सफलतापूर्वक पूर्ण करने के लिए कर्तव्य एवं दायित्वों का निर्धारण करता है । इस अधिनियम के लागू होने के बाद 6 से 14 वर्ष तक के प्रत्येक बच्चे के लिए शिक्षा का अधिकार मौलिक अधिकार है तथा सभी बच्चों को कक्षा 8 तक निः शुल्क शिक्षा उपलब्ध कराने का दायित्व राज्य का है ।पूर्व में सन् 1948 में संविधान सभा के सामने भी शिक्षा को मौलिक अधिकार बनाने की मांग उठी थी , लेकिन तब उन्होंने इसे मौलिक अधिकार न मानते हुए नीति निर्देशक सिद्धान्तों की सूची में रखा और अनुच्छेद 45 में लिखा कि राज्य इस संविधान के लागू होने के 10 वर्ष की अवधि में सभी बच्चों के लिए जब तक कि वे 14 वर्ष की आयु को प्राप्त नहीं कर लेते , निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा उपलब्ध कराने का प्रयास करेगा ।86वें संवैधानिक संशोधन , 2002 के अन्तर्गत मूल अधिकारों में अनुच्छेद 21अ जोड़ा गया , जिसमें कहा गया कि राज्य 6 से 14 वर्ष के आयु वर्ग वाले सभी बच्चों के लिए निःशुल्क व अनिवार्य शिक्षा उपलब्ध कराने का , ऐसी रीति में जो राज्य विधि द्वारा अवधारित करे , उपबन्ध करेगा । इसके साथ ही अनुच्छेद 45 के लिए निम्नलिखित अनुच्छेद स्थानापन्न किया
राज्य सभी बच्चों को जब तक वे अपनी 6 वर्ष की आयु पूरी नहीं कर लेते , बचपन पूर्व सुरक्षा उपलब्ध कराने का प्रयास करेगा ।
संविधान के अनुच्छेद 51अ में धारा ग के बाद धारा घ जोड़ी गई , जिसके अनुसार
यदि माता – पिता या संरक्षक हैं , 6से 14 वर्ष की आयु वाले अपने , यथास्थिति बालक या प्रतिपाल्य के लिए शिक्षा के अवसर प्रदान करे ।
अधिनियम की विशेषताएँ
निःशुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा अधिकार अधिनियम , 2009 की कुछ प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित है–
- सरकार के लिए 6 से 14 वर्ष के आयु वर्ग के बालक / बालिकाओं को शिक्षित करना अनिवार्य होगा ।
- सभी राज्य सरकारों और स्थानीय निकायों के लिए यह अनिवार्य होगा कि उस क्षेत्र विशेष के सभी बालकों को विद्यालय भेजें ।
- शिक्षा विभाग के सदस्य / कर्मचारी घर – घर जाकर स्कूल से छूटे बच्चों की तलाश करेंगे ।
- अभिभावकों की भी यह जिम्मेदारी होगी कि बच्चों को विद्यालय भेजे ।
- बालकों को अनुत्तीर्ण नहीं किया जाये ।
- कोई भी विद्यालय बच्चों को प्रवेश देने से इन्कार नहीं कर सकेगा ।
- 60 विद्यार्थियों तक पढ़ाने के लिए कम से कम 2 प्रशिक्षित शिक्षक होंगे ।
- इस कानून में प्रावधान है कि एक शिक्षक पर 40 से अधिक छात्र नहीं होंगे । जो कि कोठारी आयोग की अनुशंसा 1 : 30 से कम है ।
- विकलांग , मन्दबुद्धि बच्चों के लिए प्रशिक्षित शिक्षकों की व्यवस्था होगी ।
- खर्च का वहन केन्द्र व राज्य सरकारें मिलकर करेंगी ।
- बालकों को घर से 1 किमी . के दायरे में स्कूल उपलब्ध कराना होगा ।
- राज्य सरकारें 6 वर्ष से कम आयु के बालकों के लिए प्री – स्कूलिंग की व्यवस्था करेंगी ।
- सत्र शुरू होने से 6 महीने बाद तक प्रवेश दिया जाएगा ।
- निजी विद्यालयों में 25 फीसदी सीट गरीब बच्चों के लिए आरक्षित होगी ।
- निजी स्कूलों में कोई पूर्व स्क्रीनिंग टेस्ट , प्रतियोगिता आदि परप्रतिबन्ध होगा ।
- अध्यापकों को अनावश्यक सरकारी कार्यों से मुक्त रखा जाएगा ।
- तीन वर्ष की अवधि में आधारभूत सुविधाओं की व्यवस्था विद्यालयों में कराई जाएगी ।
- बच्चों का स्कूल फीस , यूनिफॉर्म , किताबों , परिवहन , मध्याह्न जैसी व्यवस्थाओं पर खर्च भी शून्य होगा ।