बाल विकास का अर्थ || बाल विकास की परिभाषा

● बालक का विकास भ्रूणावस्था से ही प्रारम्भ होता है। विकास की प्रकिया जीवन पर्यन्त चलने वाली प्रकिया है। बालक के जन्म से पूर्व तथा पश्चात् जो भी परिवर्तन दिखाई देते हैं, वे सब बालक विकास के ही अंग हैं।

● मानव विकास की सर्वप्रथम अवस्था शैशवावस्था है। इसकी अवधि जन्म से 5 वर्ष मानी जाती है इसे मानव जीवन का आधार भी कहा जाता है। 6 वर्ष से 12 वर्ष की अवस्था बाल अवस्था कही जाती है, इसे व्यक्ति के जीवन की निर्माणकारी अवस्था भी कहते हैं। इस समय जो आदतें व ढंग विकसित हो जाते हैं, उसे आगे चलकर बदलना मुश्किल हो जाता है। इसे जीवन का अनोखा काल भी कहा जाता है।

● किशोरावस्था 12-18 वर्ष तक मानी जाती है। इस अवस्था में बालक में शारीरिक, मानसिक, सामाजिक और संवेगात्मक विकास में कॉतिकारी परिवर्तन होते हैं। इसे विकास की प्रक्रिया का सबसे कठिन काल कहा जाता है।

बाल विकास का अर्थ :-

● आज के युग में ज्ञान-विज्ञान के विकसित होने के कारण मानव विकास को लिपिबद्ध कर लिया जाता है। मानव विकास के इतिहास में ज्ञान – विज्ञान की अनेक नई शाखाओं का विकास हुआ है। व्यक्ति के गर्भ में आने से लेकर मृत्यु तक के विकास के अनेक नवीन पहलुओं को मनोविज्ञान प्रस्तुत करता है।

● गर्भाधान से लेकर जन्म तक व्यक्ति में अनेक प्रकार के परिवर्तन होते हैं, जिन्हें भ्रूणावस्था का शारीरिक विकास माना जाता है। जन्म के बाद यह कुछ विशिष्ट परिवर्तनों जैसे – गति, भाषा, संवेग और सामाजिकता के लक्षण उसमें प्रकट होने लगते हैं। विकास का यह क्रम वातावरण से प्रभावित होता है। प्रत्येक व्यक्ति के लिए यह आवश्यक है कि उसे बालक के समग्र विकास के लिए के लिए उसे बालक के विकास की विभिन्न अवस्थाओं के बारे में पूरी जानकारी और समझ होनी चाहिए। इन अवस्थाओं के कारण बालक में होने वाले परिवर्तनों के अनुसार कोई व्यक्ति अपनी कार्य-प्रणाली को विकसित कर सकता है।

● विकास का अर्थ केवल बड़े होने या कद भार बढ़ने से नहीं है, विकास के अंतर्गत बालक या व्यक्ति में परिपक्वता प्राप्त करने की दिशा में आगे बढ़ने का एक निश्चित क्रम होता है। यह एक तरह की प्रगतिशील श्रृंखला होती है। प्रगति का अर्थ भी दिशा बोध युक्त होता है। यह दिशा बोध आगे भी होता है पीछे भी।

● विकास का अर्थ परिवर्तन है। परिवर्तन एक प्रकिया है, जो हर समय चलती रहती है। इसमें केवल शरीर के अंगों का विकास ही नहीं होता बल्कि इसके अलावा सामाजिक, सांवेगिक अवस्थाओं में होने वाले परिवर्तनों को भी सम्मलित किया गया है। यह परिवर्तन दो प्रकार के होते हैं। मात्रत्मक परिवर्तन और गुणात्मक परिवर्तन।

मुनेरो के अनुसार बाल विकास की परिभाषा :-

” परिवर्तन श्रृंखला की वह अवस्था, जिसमें बच्चा भ्रूण अवस्था से लेकर प्रौढ़ावस्था तक गुजरता है, विकास कहलाता है “

गैलन के अनुसार विकास की परिभाषा :-

” विकास सामान्य प्रयत्न से अधिक महत्व की चीज है। विकास का अवलोकन किया जा सकता है और एक सीमा तक इसका मूल्यांकन एवं मापन भी किया जा सकता है। विकास का मापन तथा मूल्यांकन तीन रूपों में किया जा सकता है–
(1) शरीर निर्माण
(2) शरीर शास्त्रीय (3) व्यवहारिक व्यवहार चिन्ह विकास के स्तर एवं शक्तियों की विस्तृत रचना करते हैं।

हरलॉक के अनुसार विकास की परिभाषा :-

“विकास बड़े होने तक ही सीमित नहीं है, वस्तुतः यह तो व्यवस्थित एवं समानुपात प्रगतिशील का एक क्रम है, जो परिवक्वता की प्राप्ति में सहायक होता है।”

जेम्स ड्रेवर के अनुसार विकास की परिभाषा :-

“विकास वह दशा है जो प्रगतिशील परिवर्तन के रूप में प्राणी में सतत् रूप से व्यक्त होती है। यह प्रगतिशील परिवर्तन किसी भी प्राणी में भ्रूण अवस्था से लेकर प्रौढ़ अवस्था तक होता है। यह विकास तंत्र को सामान्य रूप से नियंत्रित करता है, यह प्रगति का मापदण्ड है और इसका आरम्भ शून्य से होता है।”

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